इंट्रायूटरिन इनसेमिनेशन

इंट्रायूटरिन इनसेमिनेशन
कभी-कभी गर्भ धारण के लिए प्रकृति को सहायता की जरूरत होती है और डॉक्टर यह मदद दे सकते हैं।ऐसा ही एक प्रोसेस होता है इंट्रायूटरिन इनसेमिनेशन। इस प्रक्रिया में अच्छी गुणवत्ता के शुक्राणुओं को अलग किया जाता है , एक पतली नलिका में शुक्राणु लेकर नारी गर्भाशय में इसे डाल दिया जाता है। यह विधि पति के शुक्राणु और पत्नी के अंडे से मिलन के अवसर बढ़ा देती है। आईयूआई की सफलता कई बातों पर निर्भर है। बांझपन का कारण यदि संभोग नहीं कर पाना है तो ज्यादा सफलता मिलती है। इसके बजाय जहां शुक्राणु की संख्या में कमी हो, औरत की वर्ष 35 वर्ष से ज्यादा हो तो सफलता की आशंका कम हो जाती है। 3 से 6 बार तक के प्रयत्न करने में सफलता मिल सकती है नहीं तो यह तरीका उपयुक्त नहीं है ऐसा मान लेना चाहिए। इस प्रक्रिया में 15 से 20% तक की सफलता मिलने का चांस रहता है। अंडाशय में अंडाणु बनने के लिए कुछ दवा महावरी के दूसरे दिन से दी जाती है। दसवे दिन से सोनोग्राफी द्वारा अंडाणु बना है या नहीं यह देखा जाता है अंडाणु 18 से 20 एमएम का होने पर उसे बीज निकलने के लिए इंजेक्शन लगाया जाता है।सोनोग्राफी के लिए चार या पांच बार आना होता है। यह ओपीडी प्रोसीजर होता है। इसमें भर्ती या कोई एनेस्थीसिया देने की जरूरत नहीं पड़ती है। ओवुलेशन मतलब की अंडाणु से बीज निकलने का समय या इंजेक्शन लगाने के 24 से 36 घंटे के बाद आईयूआई किया जाता है। वीर्य परीक्षण करके उसे लेबोरेटरी में प्रोसेस किया जाता है ताकि वीर्य की गुणवत्ता बढे। आईयूआई के बाद उठने बैठने काम करने या सहवास करने में कोई परहेज नहीं होता है ।14 से 15 दिन के बाद युरिन टेस्ट करने से आईयूआई के रिजल्ट का पता चलता है।

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